Pages

Saturday, February 6, 2021

चैतन्य

चैतन्य
कभी मेरे निज धर्म, संस्कृति और सभ्यता पर गौरवान्वित महसूस न किया, 
कभी मेरे मंदिरों, तीर्थ और पूजा का अर्थ समझ न पाये,
ना ही तिलक, यज्ञोपवीत और संस्कार को जान पाये।
अब आ गये मुझे मेरा धर्म सिखाने,
मुझे यह बताने कि मैं अब तक पागल बन असभ्य रहा हूं, 
मुझे मेरी औकात बताने वालों,
अब अपने गिरेबान में झांक कर देख लो,
थोड़ा अपना थूका चाट लो,
नर नहीं तुम पशु थे,
थोड़े नहीं पूरे मरे हुए थे,
अब अपने पर रहम खाओ,
अपने गिरे हुए लक्ष्यों की ख़ुद ही अर्थी उठाओ,
ढूंढ लो अपना ठिकाना किसी गटर में,
और नहीं तो कचरे के ढेर में,
हम न‌ कभी तुम को मुंह लगायेंगे,
दूर से ही तुम्हें भगायेंगे,
मां भारती की रक्षा हेतु "अक्स" अपने बलिदान दे जायेंगे।। 
-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun
#मां_भारती
#देश_धर्म
#सनातन_धर्म_चेतना

No comments:

Post a Comment

NAME:
DOB:
EMAIL ADDRESS:
POST:
COMMENT: