मन और मोक्ष
ओ३म् सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान्नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव ।*
*ह्रत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ।।*-(यजुर्वेद 34/6)
*भावार्थ:-*एक घुड़सवार और सारथी हमेशा अपने अश्वों को रास और शब्दों से सुयोजित कर यात्रा को बिना भटके पूर्ण करता है उसी प्रकार मन पर नियंत्रण हम मनुष्यों को मोक्ष प्राप्ति हेतु ले जाता है। जो विचार शक्ति और कर्म ह्रदय से संचालित है, जो पुरातन और अमान्य नहीं होते हैं अतः हे शिव, मेरी विचार शक्ति और कर्म शक्ति को मेरे तीव्र गति वाले "अक्स" मन से हृदय में सुस्थापित कर मुझे मोक्ष प्राप्ति हेतु संकल्प शक्ति का वर प्रदान करें।।
-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun
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