Friday, December 13, 2019

शंभो SHAMBHO - The MAHA MANTRA

- शंभो (SHAMBHO) -
The "MAHA MANTRA"


ॐ नमो आदि गुरुवे श्री शंभो नाथय नमो नमः

ॐ महादेवाय सदा शिवाय कैलाश पति: नमो नमः

रूप: देहि, जय: देहि
आरोग्यम देहि  नमो नमः

बुद्धि: देहि, बल: देहि,  दीर्घायुम देहि नमो नमः

ॐ श्री रुद्रमुर्त्य  ' अरुण ' देवाय नीलकंठाय नमो नमः
ॐ ॐ ॐ
#arunaksarun

Om Namo Aadi Guruve, Sri Shambho Nathaya Namo Nameh:

I bow before the self created primordial Master of infinity  

Om Mahadevay, Sada Shivay, Kailash Pateya: Namo Nameh:

I bow before the omnipresent, omniscient greatest soul, the lord  of universe "Mahadev"

Rupoh: dehi, Jaya: dehi, Aarogyam Dehi Namo Nameh:

I bow and pray  please Bless me with intact character, bless me with graceful victory, bless me with everlasting vitality

Budhdhi: Dehi, Bala: Dehi, Dirghayaum Dehi Namo Nameh:

I bow in surrender and pray please Bless me with unquestionable intelligence, Bless me with positive energy and strength, Bless me with longevity 

Om Sri Rudra Murtaya 'Arun' Devay NeelKanthaya Namo Nameh:

I bow before the beginner of  sound, the  defender of  consciousness, our awakening 'aks' light,  the Lord of seen or unseen lords  ...

Om Om Om 

#arunaksarun

Dial 100 is now Dial 112


"DIAL 100"
A Novel by Sh. SM Pathak  
-a reader's reaction-



आज दोपहर के खाने के बाद Dial 100 पढ़ना शुरू किया, इस बार धीरे धीरे पढ़ूंगा, कोई जल्दी नहीं है, सब कुछ वही है सिर्फ emotions ही तो आगे बढ़े हैं। फर्स्ट चैप्टर विक्रम सिंह पढ़ा। विक्रम सिंह type characters अब rarest species हो गए हैं इस समाज में, दरअसल जैसे हम होते हैं या deserve करते है वैसा ही समाज हमें घेरता हैं। आज से 30 साल बाद लोग जब इस नावेल को पढ़ेंगे तो सब कुछ काल्पनिक लगेगा पर यदि आज हम देखें इस प्रकार के लोग हमारे समाज मे मिलेंगें पर समय के साथ काफी बदल गया, 30/35 साल पुराना नावेल अब एक किदवंती में बदल जायेगा। अनिल गुप्ता सीमेंट वाला और मजबूत और असरदार हो गया और mrs Gomes अब unknown हो गई क्योकि काकरोच के नाम नहीं होते, वो भीड़ का हिस्सा बन गई राजीव खन्ना जैसे learners अब खुद ही mentor बन गए हैं वो अब सीखने नहीं सिखाने आते हैं। सब तरफ एक chaos है पर उम्मीद जिंदा हैं।।
देखते आगे क्या होता हैं ।।





Contd.. Dial 100
दूसरा चैप्टर
Gentleman killer: वो ढीला ढाला सा आदमी झोला टाइप का लग रहा था, लगा कि खुद अपनी पिस्तौल के वज़न में दब जाएगा, इतना सभ्य के जब गाड़ी से उतरने को कहा तो प्लीज बोला। ऐसा लग रहा था यहाँ पाठक सर् किसी लेखक की , कहीं खुद की dark साइड की बात तो नहीं कर रहे थे, एक सीधा सादा आदमी जो टेलीफोन deptt में हैं और सबको लगता था कि ये तो अपनी ही कलम के बोझ से दबा हुआ है पर जब कलम चली तो निशाना भी अचूक था और वार भी जानदार था, इतना खतरनाक कि विक्रम सिंह जैसे अनुभवी पुलिस अफसर कुलभूषण के हाथों एक नही बल्कि दो बार मरते मरते बचा, कुलभूषण जैसे करैक्टर नावेल में कम पर असल जिंदगी में ज्यादा पाए जाते हैं और अक्सर कमजोर शख्यिअत समझकर इग्नोर किये जाते है पर जब मौका मिलता हैं तो वही ऐसा खेल खेल जाते हैं कि उन्हें कमजोर समझने वाले हाथ लगाके सिर्फ सूजन महसूस कर पाते हैं , पर अच्छाई हमेशा बुराई पर हावी होती हैं चाहे वो किताब हो या असल जिंदगी। कृष्ण कांत का अच्छा वक्त था जो राजेश को भूषण दिख गया और विक्रम सिंह की अच्छी नीयत की लाज रखी गई अन्यथा सारी जिंदगी वो अपने आपको इस बात के लिए कोसता रहता, as usual वकील साहब ने अपनी फीस का हक़ अदा किया और समाज के एक दुर्दांत अपराधी को समाज को वापस दिया, उसकी सजा ए मौत को life imprisonment में तबदील करा कर। वो कहता है मैं वापस आऊंगा, वह मानता है कि जेल के 20 साल उसकी हालत खराब कर देंगे, कैसा इतेफाक़ है लेखक की positive साइड उसके जिंदा रहने को भी कानून की जीत मानती है और dark साइड बदला लेने को। ख़ैर अभी तो सब ठीक ठाक हैं, इसी उम्मीद पर दुनिया क़ायम है बाकी आगे देखते है क्या होता है ??




Chapter 3 - Dial 100:
Kul Bhushan :
शातिर अपराधी शातिर ही होता है। जंगल के अंदर जंगल का कानून चलता है। जेल भी कुछ ऐसे ही हैं। जेल ने तो नहीं पर जानवरों ने कुल भूषण के तेवर कमजोर किये पर वो भी कुछ समय के लिए और फिर नरभक्षी, आदतन वहशी जानवर अपनी उन्ही हरकतों पर आ गया, लाचार निरीह बनकर जेल बदलवाई और वहाँ भी हर एक साथ वही खेल खेल खेला, चाहे वो साथी क़ैदी हो या जेल स्टाफ। अपने मतलब का काम करवाया और इस्तेमाल किया। ये इस्तेमाल आगे भी चला, हर एक से कीमत वसूली गई, लोबो, वेरोनिका, सपन, सभरवाल साहब या वो क्राइम के नन्हे खिलाड़ी जो सिर्फ शोरूम लूटने का प्लान बना रहे थे और क़त्ल में भी मुल्ज़िम बन गए। बुरी बीती तो केवल घन श्याम गुप्ता जी के साथ, दुकान लूट गई, सगे भाई का कत्ल हो गया और घर तो पहले ही खराब था। बुढ़ापे की औलाद हो या शादी, मोहब्बत खून के आँसू रुलाती है। अब कहीं भी कुछ ठीक नहीं है पर शहर में कुल भूषण की मौजूदगी उसके गिरफ्तार होने का सबब बन सकने की उम्मीद, अलग अलग हाथों में लगी नीली स्याही और विक्रम सिंह की कसम पर दुनिया क़ायम है देखें आगे क्या होता हैं??




चैप्टर 4 / डायल 100
विक्रम सिंह-
कहानी बेहद ही संगीन मोड़ पर पहुँच गई है, कुल भूषण का लालच उसे शहर नहीं छोड़ने दे रहा और विक्रम सिंह ने उसके हर ठिकाने को टटोल रखा हैं, सपना एक कमजोर कड़ी है जो सिर्फ कुछ समय के लिए उसे पनाह दे सकती हैं, और सभरवाल साहब ने उसकी धमकी के जवाब में अपनी लाइसेंसी पिस्तौल का हवाला देकर उसे अपने आसपास फटकने पर अंजाम सिखाने का इंतज़ाम करे बैठे है, और माल अभी भी वही सेफ हो सकता है जहां उसने 2 साल पहले छिपाया था तो मधुमखियों के छत्ते में हाथ डालना पड़ेगा । गोखले की जो दुर्गत हुई हैं उसका वो पहले दिन से ही हक़दार था पर उसके साथ Sp और शुक्ला के साथ जो बीती हैं वो उनका अपना वक़्ती हिसाब था, इस एपिसोड से 2 फायदे हुए, विक्रम सिंह ने वहाँ मौजूद लोगों को उनकी सही औकात का हिसाब किताब दिया और सबसे बड़ी बात कि नीली इंक से मर्डर कम डकैती केस सॉल्व हुआ और पिक्चर क्लियर हुई। यहाँ ये जानने का भी मौका मिला है कि कैसे विक्रम सिंह नाजायज़ दबाब को झेलते हुए भी ठंडे दिमाग का इस्तेमाल कर अपने primary obejective को नहीं भूलते साथ ही मोहम्मद अली को न फंसाकर वो अपने प्रोफेशनल attitude को व्यक्त किया हैं । कुल भूषण अभी भी शहर में है और उसकी सही जगह अपना माल लेकर शहर छोड़ना नहीं बल्कि सलाखों के पीछे हैं जहाँ उसे पहुचाये बिना विक्रम सिंह को नींद नहीं आएगी और जब तक विक्रम सिंह को नींद नहीं आएगी तब तक आप और हम सुरक्षित हैं और उम्मीद की लौ क़ायम हैं।




Chapter 5 / Dial 100
Kul Bhushan and Vikram Singh
एक कविता हैं, कहीं पढ़ी थी मैंने
"मंजिल उन्हें मिलती है
जिनके सपनों में जान होती है,
पंख से कुछ नहीं होता
हौसले से उड़ान होती है।"

सिक्के के 2 पहलू है एक वो जो समाज के लिए है एक वो जो समाज के खिलाफ काम कर रहा है। अभी तक कहानी में दोनों के बीच मे एक thin लाइन थी पर यहां आकर वह line एक चौड़ी खाई में तब्दील हो गई ।
कुलभूषण को ये भरोसा था कि वह और दिनों की तरह आज भी जीत जायेगा पर उसके पापों का अंत होना था और वह दिन आज का था, उसकी गलीज़ जिंदगी का यही अंत था, मौत तो एक बहाना हैं पर अंजाम तक कौन कैसे पहुचता है ये इम्पोर्टेन्ट हैं। आज विक्रम सिंह चाहता तो उसके पास अपने आप को बचाने का बहाना था पर बहादुर बहाना बनाकर जान की बाज़ी खेलते हैं ना कि छुप जाते है। विक्रम सिंह ने यही किया उसने मौत को चुना न कि मौत ने उसे।

When you choose a career, you not only choose a profession for living but also a life. विक्रम सिंह इसी बात का जीता जागता उदाहरण थे, ये कहानी विक्रम सिंह की नहीं बल्कि राजीव खन्ना के transformation की है । ये दर्शाती है कैसे समाज ने अपना हीरो पाये हैं, आसान रास्ता और मुश्किल रास्ता का चुनाव हमेशा बना रहेगा और जो मुश्किल रास्ते चुनता है वही अपनी लाइफ को meaningful ढंग से डिफाइन कर पाता हैं। आसान रास्ता चुनने वाले कभी भी नही समझ पाएंगे कि जो लोग मुश्किल रास्ता चुनते हैं उनमें क्या अलग तत्व पाया जाता है जो उन्हें जानते बुझते ऐसा दुःसाहस करने का हौसला देता हैं।

ऐसा लगता है कई बार दाता अलग अलग मिट्टी के ढेर रखता है, कैसा बन्दा बनाना है ऐसे ही ढ़ेर से मिट्टी उठाता है और बनाकर भेज देता है, विक्रम सिंह टाइप ढ़ेर बीच बीच मे ही इस्तेमाल करता हैं वरना ज्यादातर तो कच्चे पक्के ढ़ेर से काम चल देता हैं ख़ैर एक विक्रम सिंह चला गया पर पीछे दूसरा और रौद्र, मज़बूत, नौजवान विक्रम सिंह छोड़ गया, भाई साहब समझ लो अपना जीवन सफल कर गया। उम्मीद की मशाल जला कर छोड़ गया।।

- Arun Rise Sharma

ps. This novel is available in Hindi language and is not translated yet.