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Wednesday, January 27, 2021

मेरी अरदास

मेरी अरदास"

*मैं शांत था, 
मैं मौन था
मैं चुप था, 
क्योंकि गूरु की परंपरा 
मानते हुए भी अमृतधारी नहीं था,
इसलिए सहमा हुआ सा
पंथ के ठेकेदार से दूर 
दरबार साहिब में हाथ 
जोड़कर कोने में खड़ा था,
और गूरु भक्ति, लंगर की 
दाल रोटी और कार सेवा में खोया हुआ था,

कब कब तुम देश द्रोहियों ने 
भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाए
न जाने कितनी बार तिरंगे जलाऐ
दरिंदगी दिखाकर मुझे 
और मेरे "अक्स" हिंदू भाई को डराया  
हम दोनों को अपने ही 
घर में  शरणार्थी बनाया,*

*सोचता था सुबह में 
बस रोटी का,
शाम को मौज लेता था 
मयस्सर मस्ती में अपनी हस्ती का,

मन लगाता था बस 
दोस्तों की बस्ती में, 
और मानता था 
भाड़ में जाए country सारी,
अगर सस्ती मिल जाए 
मुर्ग मदिरा खूब सारी*

*देश धर्म प्रतिष्ठा अच्छाई
सब भूल बैठा और 
 दुश्मनों को दोस्त समझ बैठा
बुर्जुगों के बलिदान रक्त 
को भूला दिया
झटके को भूल जिव्हा 
स्वाद ने ग़ुलाम बना दिया*

* साहिबजादों की बलि को 
कड़वी गोली समझ निगल लिया 
अपने स्वार्थ सिद्धि को सच समझ लिया,

आक्रांताओं के वंशज की 
गोद में बैठ गया
गूरु के वध को नादान बन 
मीठी गोली में लपेट निगल गया*

*अब है जागी हिम्मत, 
कथनी और करनी में अंतर स्पष्ट करना है
अब मां भारती के धर्म 
और संस्कृति पर मर मिटना है,
नक़ली स्वाभिमान और सरदारी 
के पीछे छिपना बंद करना है,
त्याग की परिभाषा को 
साफ़ साफ़ गढ़ना है,*

*नहीं बनना अब खिलौना
देश के दुश्मनों के हाथ का
ढाहनी है दीवारें अब सीमा की, 
मिलकर साथ बढ़कर 
वापस लेनी है नानक भूमि 
और हिंगलाज माता सारी*

हे वाहे गुरुजी अब सच्ची अरदास करनी है,
कबूल कर लो, बस यही बिनती करनी है,
अखण्ड भारत राष्ट्र की निर्माण में मेरा भी रक्त मिला दो,
भाईयों के बीच एकता की दीवार और ऊंची बना दो। 
- अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun
२७/०१/२०२१