Monday, April 26, 2021

वामपंथ और सनातन संस्कृति

वामपंथ और सनातन संस्कृति

जब वामपंथी प्रशासन में आ जायेंगे तो 
मुफ्तखोरी की आदत लगा जाएंगे, 

भारी-भरकम शब्दों से खोखले नारे लगाएंगे,
 मुफ्त सामान और योजनाओं में जनता का धन लुटाएंगें, 

प्रशासन को पंगु कर करोड़ों रुपए के विज्ञापनों से कर्कश शोर मचाएंगे, 
मीडिया के सारे प्लेटफार्म पर मौत का नंगा नाच नचायेंगें, 

अंत में सर जी यह निकम्मा, वो भी निकम्मा, सब निकम्मे कहते कहते बेचारगी का नाटक दिखायेंगे और 
इस तरह  ये वामपंथी राष्ट्र भावना, देश और समाज को पूरी तरह निगल जाएंगे... 

और 'अक्स' हम स्तब्ध से एक कोने में मुंह में दही जमाये भौंचक्के से कबूतर की तरह आंख बंद करे, ठगे से खड़े रह जायेंगे।

यह सब बर्बाद कर जायेंगे,
वर्षों के सभ्यता संघर्ष पर आलस्य और मुफ्तखोरी वाला पोंछा लगा जायेंगे.. 

-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun

Saturday, April 24, 2021

कोरोनावायरस पर विजय

कोरोनावायरस पर विजय

नमस्ते मित्रों, जीवन में उतार चढाव जीवन के घटित होने का प्रतीक है, अलग अलग अनुभवों से कुछ नया सीखने को मिलता है यही जीवन के धरातल पर जीवन के होने का घटनाक्रम है। यदि हम जीवन को महसूस करना चाहते हैं तो हम सब कुछ वो देखे जो इस जीवन की संभावनाएं व परिणीति हैं। कोरोनावायरस आज के समय में भीष्म चैलेंज है, कल ही मैं एक वीडियो में  देख रहा था  कि  इस वायरस के आकार, volume के आधार पर हम देखें तो सिर्फ आधा T-spoon ने पूरी दुनिया में गर्दा उठा रखा है । ये संपूर्ण मानव सभ्यता के अस्तिव पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है, हमारा अभी तक का ज्ञान उस के सामने बौना साबित हो रहा है, हर बार यह वायरस नए ढंग से mutate होकर आ रहा है, कितने ही अलग अलग forms मानव सभ्यता पर विनाश बनकर मंडरा रहे है। धन्य हैं वह डॉक्टर जिसने सबसे पहले इसका कोड open करके internet पर डाला जिसके कारण अलग अलग स्थानों पर वेसिन बनने का कार्य आरंभ हो सका अन्यथा  इतनी जल्दी vacinnation संभव न हो पाता।  इलाज के बावजूद अभी भी संघर्ष जारी रहेगा और हमें साहस और धैर्य से इन परिस्थितियों का सामना करना है। Doctors, सरकार और सभी कोरॉना वॉरियर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं अन्यथा जिस प्रकार की परिस्थितियों में हम सब सरवाइव कर रहे हैं यह प्रशंसा करने योग्य है। १३० करोड़ से भी ज्यादा जनसंख्या वाले विकासशील देश में यह  हाहाकार मचा सकता था पर हमारे कोरोना वारियर्स और सरकार ने पूरी एड़ी चोटी का जोर लगा कर इसे नियंत्रित करने में दम लगा रखा है। हम सबकी सक्षमता भय को नियंत्रित करने और अनुशासन में रहकर अपने आप को ऐसी परिस्थिति में तैयार रहने में है।  हम सबको अपने निजी स्वार्थ और लालच छोड़कर सभी के साथ सद्भावना से सहयोग करना चाहिए। हमारा आपस में विरोधाभास हो सकता है, राजनीति या निजी मतभेद हो सकता है पर  मानव सभ्यता, संस्कृति और भविष्य की पीढ़ियों के लिए हमें एक जुट होकर कार्य करना चाहिए, क्षुद्र उद्देश्यों को अलग रखकर संपूर्ण विश्व के लिए सोचना ही वास्तविक मानवीय संवेदना और भविष्य निधि है। 
आइए हम सब एक होकर इस दिशा में आगे बढ़े और अपने कर्तव्य का पालन करें। 
जय हिन्द जय भारत, वंदे मातरम्
-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun

Thursday, April 22, 2021

कर हर मैदान फतेह - हम और कोरोनावायरस

कर हर मैदान फतेह-  

हम और कोरोनावायरस 

कोरोना वायरस आपके घर का दरवाजा खटखटा रहा है, आपके कमजोर और टूटने का इंतजार कर रहा है। आप थोड़ा सा भी कमजोर पड़े तो आप को ढाह देगा तो पॉजिटिव रहे, Things are improvimg. Treatment अच्छे चल रहे हैं, अच्छे रिस्पॉन्स आ रहे है, हर रोज लोग अगर बीमार हो रहे है तो ठीक भी हो रहे हैं, पिछले १०० साल में ऐसी कोई बीमारी महामारी बनकर इतने बड़े स्तर पर नहीं आई थी पर अब आ गई तो लड़ेंगे और जीतेंगे, doctors और सरकार बहुत अच्छा काम कर रही हैं। दिन प्रतिदिन improvement आ रही है, अपने को बचाएं जैसे अभी तक बचा रहे हैं, आज ही मैंने ८/१० लोगों से बात करी जो अपने को अस्वस्थ एहसास कर रहे थे मैंने उन्हें यही कहा कि जो सिचुएशन एक साल पहले थी अब वैसी नहीं है इसी कारण पहले से ज्यादा dreaded वायरस को हम पहले के अच्छे से डील कर रहे हैं। अगर  लाकडाउन को अच्छा मानकर घर बैठने का प्लान बना रहे हैं तो यह समझ लीजिए कि आप ने पिछले साल के लाकडाउन में अनुशासित होना नहीं सीखा था और अब यही सामने आ गया इस तरह की लापरवाही से यह १० साल  में भी कुछ नहीं बदलने वाला अतः lifestyle बदलिए, ख़ान पान ठीक कीजिए। अपने आपको नेगेटिव मीडिया और कु-प्रचार न्यूज से बचाए, आलतू फालतू चैनल और ऐसे शोशेबाज जो डर का माहौल कहकर आपको डरा रहे है वह आपके मित्र नहीं हैं, सोशल मीडिया पर भिनभिनाने वाले मच्छर और खटमल है, उन्हें खून चूसने की आदत है और वो यही कर रहे हैं, उनसे, उनकी पोस्ट से बचे, वह आपकी पॉजिटिव एनर्जी लेकर आपको भय और चिंता में डूबा कर आपको शेर के सामने बंधी बकरी  बनाना चाहते है। अपना खाना पीना ठीक रखे, मास्क इस्तेमाल करें, सफाई का ध्यान रखें, herbs और vitamins लेते रहें। आप अपने परिवार, अपने मित्रों के लिए अमूल्य है और याद रखें कि उन डराने वाले लाशों के सौदागरों को इस बात से घंटा फर्क नहीं पड़ता है आप जी रहे है या मर गए, अपने लिए, अपने परिवार के लिए, अपने मित्रों के लिए, अपने शुभचिंतकों के लिए अपने को मजबूत रखें। विश्वास करें कि यह जीवन नही है, ये केवल एक फेस हैं, जल्द ही ये भी चला जायेगा। यदि आप सभी इस बात से सहमत हैं कि हम कोरोनावायरस के सामने हार नहीं मानेंगे तो ऐसा ही कुछ पोस्ट करें और अपने साथियों को अभिप्रेरित करें।

स्वस्थ रहे, प्रसन्न रहें, सुरक्षित रहें,

ॐ नमः शिवाय

-Arun Rise Sharma
#arunaksarun


Monday, April 19, 2021

यह सोशल मीडिया पर कोरोनावायरस सैकंड लहर पर क्या बवाल मचा है? (अप्रैल २०२१)

दो तरह के स्टेटस सोशल मीडिया पर चल रहे हैं 
एक वो जो कह रहे हैं हिम्मत रखों, फाइट करो, इस रात की जल्द ही सुबह होगी, सब ठीक होगा, ख़ान पान का ध्यान रखो,  सकरात्मकता वाले जो हर रोज़ कुआं खोदने निकलते हैं और रोज पानी पीते हैं, उनके लिए जिंदगी आसान नहीं है पर आगे बढ़ने की उम्मीद उनमें हमेशा बनी हुई है, हम होंगे कामयाब वाले असली खालिस हीरो जो कभी नहीं थकते, बचपन से ही जुझारू और अपनी किस्मत खुद बदलने वाले 

और 

दूसरे वह है जो बिस्तर में पड़े हुए भायं भायं कर रहे हैं कि इलाज़ नहीं हो रहा, सरकार फेल हो गई, दवाई नहीं मिल रही, लोग मर रहे हैं, शमशान भर गये है, नकारात्मकता वाले -आई फोन,पैड वाले छेनु टाईप निठल्ले, ४०-४५ साल वाले जनमु टाइप सैल्फ डिक्लेयर युवा छात्र- मल्टीपल लहसुन प्याज जैसी डिग्री वाले, जिनका ईकोसिस्टम जिंदा लोगों से नहीं बल्कि सामूहिक मौतों से जुड़ता है उन्हें सच में वायरस का ज्यादा ख़तरा है क्योंकि उनके अंदर की नकारात्मकता उनके body system को खोखला कर चुकी हैं। उस किस्म के खैराती, मुफ्तखोरी से जुड़े अर्थ🔔शास्त्रियों का ध्यान रखना है, 

याद रखें हमें बीमार से नहीं बल्कि बीमारी से लड़ना है।

-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun

Sunday, April 18, 2021

आंतकवाद और वामपंथ (नक्सलवाद) का आपस में क्या संबंध है?

आंतकवाद और वामपंथ (नक्सलवाद) का आपस में क्या संबंध है?
आंतकवाद, लोगों को डराकर, धमका कर, बहका कर उन्हें छद्म लक्ष्य और निश्चित जीवनशैली नियमों को अमल कराने पर जोर देकर हिंसा और समाज विध्वंसक गतिविधियों की तरफ़ प्रेरित करना, सरकार को डराकर, तोड़ फोड़ कर,  विरोधी लोगों को मृत्यु भय से भयभीत करना, उनकी हत्या करना, हथियारों का इस्तेमाल कर अपनी लालसाओं को पूरा करने के लिए अपराधिक कृत्य करना, किसी प्रकार से संसाधनों का मालिकाना अधिकार हासिल करना और उनका दुरुपयोग अपने खुद के लिए और अपने साथियों के लिए जो कि इसी लालसा में साथ निभाते हैं कि सबसे ज्यादा मालामाल वह खुद होंगे, बाकी सब उनके सेवादार और अनुचर होंगे के नाम पर हिंसक तरीके से नियंत्रण प्राप्त करना है और वामपंथ या जिसे क्षेत्रीय तौर पर नक्सलवाद का रुप माना जाता है, एक दूसरे से न केवल जुड़े हैं बल्कि आपस में गुंथे हुए हैं क्योंकि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वामपंथ यह समझता और जानता है कि वामपंथ विचारधारा दुर्बलता से भरी अपाहिज सोच है और चंद कामचोरों के दिमाग़ की उपज है अतः स्वयंमेव आने में असमर्थ हैं क्योंकि यह उस छलनी की तरह है जिसके बारे में कहावत है कि  छाज तो बोले, छलनी कैसे बोलें जिसमें ७० छेद अतः वामपंथ को हमेशा गाहे-बगाहे उस मौके की तलाश रहती है जिसमें शासन अपाहिज हो जाये और लोग पागलपन में डूब जाये और आसानी से समाजवाद और साम्यवाद यानी सबको बराबर मात्रा में मिलेगा, के नाम पर बरगलाये जा सके। वास्तव में  यह समाज व्यवस्था में लोगों को भड़काकर, गलत तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष निकालकर उनको  निराशा और असंतोष से भरकर, पागलपन और उदंडता को बढ़ाकर उनका शोषण करने जैसा है जो उन्हें दीर्घ काल में नश्वरता और विनष्टता की तरफ़ पहुचायेगा।  १९१७ में रुस में यही हुआ, राज सत्ता रक्षात्मक मुद्रा में आ गई और अधिकारों के नाम पर जनता सड़कों पर आ गई, परिणाम सामने आ गया पर क्या उसका लाभ वास्तव में लोगों तक पहुंचा, यह सच्चाई हम सब भली भांति जानते हैं। लोगों की न तो ग़रीबी दूर हुई और ना ही जीवन सुखमय बना। अब हम सब के सामने अमरीका का उदाहरण हैं, ७०/८०/९० के दशक में जो देश एक राष्ट्र भावना से जाना जाता था और कनाडा अलग पहचान रखते हुए भी अपने को अमरीकी पहचान से जोड़ता था वही राष्ट्र २००१ में टिविन टावर पर कायरता पूर्ण आंतकवादी एक्शन को समय रहते ज़बाब नहीं दे पाया और शाकॅड होकर रह गया तो वामपंथ विचार धारा ने इसी बात का लाभ उठाना शूरु कर दिया और अमेरिकी शासन प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया और अपने आप को एक विकल्प के रूप में पेश किया। पहले से ब्रेन वाश लोगों ने इसे फैलाना और प्रसारित करना शूरु कर दिया तो मौके का फ़ायदा उठा उसी दशक में उसका स्थान चीन ने लेने के लिए अपने को तैयार कर लिया। लाख प्रयासों के बावजूद अमरीका वापस उसी स्थान पर नहीं पहुंच पा रहा है क्योंकि जनता इस दौरान कई ऐसी मुफ्त सामान और योजनाओं की तरफ़ आकर्षित हो गई। हर पार्टी से और ज्यादा मुफ्तखोरी वाली योजनाओं की मांग की जाती हैं क्योंकि मुफ्तखोरी की बीमारी ऐसे ही पड़ती है और इसके दूरगामी परिणाम जब तक सामने आते है तब तक अर्थव्यवस्था की कमर टूट जाती हैं और राष्ट्र भावना खंडित हो कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देश में बदल जाती हैं। अब प्रश्न उठता है कि राष्ट्र और देश में क्या अंतर है? देखिए राष्ट्र भावना से प्रेरित है जिसमें त्याग आदर्श और कर्तव्य की बात होती है जो वामपंथी विचारधारा को suit नहीं करती और देश क्षेत्र से और देश समय काल में बदल जाते हैं जैसे रुस का हुआ पर राष्ट्र का गौरव हमेशा स्थायित्व और संस्कृति प्रदान करता है पर वामपंथ को उससे 🔔 फर्क नहीं पड़ता है। बेसिकली वामपंथ समान रूप से सम्पन्न होना नहीं बल्कि सामूहिक रूप से निर्धन होना है और उस स्तर तक समाज व्यवस्था को तोड़ना है जहां प्रत्येक व्यक्ति को अकेले कर उसका शोषण किया जा सके। अतः दिमाग की बत्ती गुल मत होने दें, एक रहे, मुफ्तखोरी की आदत से छुटकारा पाये, क्योंकि अगर मेहनत करने की इच्छाशक्ति रहेगी तो आप वह सब कुछ भी अर्जित कर सकते हैं जो आपका स्वप्न है पर मुफ्तखोरी की आदत पड़ गई तो जो बचाया और कमाया है वह भी गंवा देंगे। इतिहास याद रखें जब जब सरकार कमजोर और अवसरवादियों से भरी होगी यह किसी न किसी रूप में आपकी निर्णय क्षमता को प्रभावित करेंगे इसलिए मजबूत रहना अपरिहार्य है और हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। 
-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun

Saturday, April 17, 2021

आजकल सोशल मीडिया पर मंदिर-अस्पताल क्या चल रहा है? (April-2021)

आजकल सोशल मीडिया पर क्या चल रहा है? (April-2021) 
आजकल सब लोग हास्पिटल पर दबा के ज्ञान पेल रहे हैं, और खूब सरकार को कोसकर अपनी भड़ास निकालने लगे हैं, ये वही लोग हैं जो वोट वाले दिन धूप तेज हैं कहकर बिना नहाय-धोय बिस्तर में पड़े रहते हैं और केवल हगने-मूतने के लिए अहसान जताते हुए उठते हैं और वहीं लोग २०१९ तक हास्पिटल की चार दीवारी पर रात को शराब पीकर मूत के जाते थे और गाहे-बगाहे सरकारी अस्पताल में जाकर डाक्टरों से हाथापाई करके अपनी दसवीं में ३४% नम्बर पर बापू के जूते से पिटे जाने की खुन्नस निकालने में लगे रहते थे। उन लोगों के लिए मुफ्त का ज्ञान हैं कि इकोनोमिक्स में एक PPC - Production possibility curve होता है जिसमें बताया गया है कि उत्पादन करने की सीमा होती है और उसके संसाधन जैसे मशीन, प्लांट, वित्त सीमित होते हैं और यह डिसाइड करना पड़ता है कि क्या जरूरत है और क्या चाहिए अर्थात या तो उन साधनों से बंदूक बना लो या ब्रेड क्योंकि सारे साधन एक साथ नहीं लगाये जाते हैं अतः दोनो का एक साथ उत्पादन भारी मात्रा में नहीं होगा, आपको लेबर, कोस्ट, मांग, सप्लाई के आधार पर अपनी priority सोचनी होगी, आपके पास जगह, मशीन, गिराहक सीमित है और उनकी खरीदारी क्षमता भी सीमित है। जब जिस चीज की जरूरत थी वो बना रहे थे, अब जरुरत बदल गयी तो production भी बदल जायेगा, ये किसको पता था कि २०२० में वुआन सबको ऐसा पेल देगा कि मुंह से मास्क और हाथ से सेनेटाइजर की शीशी नहीं छूटेगी। तो मंदिर-मंदिर खेलना बंद करो और मुंह बंद रखना सीखकर सरकार को कोसने के बजाय ( जो बहुत बढ़िया काम कर रही है) नहाकर, टूथपेस्ट करके आओ, कपड़े-वपड़े बदलो, जनता कर्फ्यू या लाकडाऊन का मतलब बिस्तर पर पड़ा रहना नहीं और अपने रिश्तेदारों को सफाई, सावधानी का व्यवहार करने को बोलो। मास्क-वास्क पहनों, समझें चिचा।
-Arun Rise Sharma
#arunaksarun 

Whether Lockdown/ Janta Curfew a solution to Covid-19 Pandemic in 2021? ( in English and हिंदी )

Whether Lockdown/ Janta curfew a solution to Covid-19 pandemic?
क्या लाकडाउन/जनता कर्फ्यू आज २०२१ में महामारी को नियंत्रित करने में सहायक होगा?
Around 3000 yrs back while living as hunters, our forefathers use to go to Jungle to gather food and other basic things like honey, wood, herbs etc despite knowing that jungle was a dangerous terrain where wild animals could kill us, injured us but going jungle was never been remain an option. One needs food to survive and that was basic question before them. They used to extra cautious and alert, keeping all precautions, ready to defend themselves against such life threatening situations. Now we have a virus waiting outside and finding us careless so it could eliminate us so what is right choice, whether to sit inside, keeping closed our economy and wait for virus to stop or use our experience and to fight against it by keeping ourselves alert and cautious, having necessary food and herbs to keep strong our body to fight and win.

Lockdown or Janta curfew is no more a solution to handle pandemic in present day. It was last year in 2020 when it was enforced bacause we were not ready for the battle. The purpose of Lockdown was to prepare us, discipline us and to get adept to new life style. Using mask, keeping social distance, avoiding large gathering, eating right, home Stay, spending time with family and dearones, regularly doing yoga, exercises, meditation are the right approach to keep safe and healthy. Those who have learnt it and are following, abstain themselves from careless life style have adopted right approach living safely and those who had not understood, went on living in same old  obsolete manner are vulnerable to virus. They would learn it too as nature would not tolerate their rash behaviour and make them live in the way it is required. So Lockdown in today's hour is not at all wanted.  To sustain and to survive our basic needs require us to work and earn. The Government can not run on all time charity. It has no finance sources and wholly depend on people like us. To enjoy democracy and human services, all of us to work hard and earn enough to sustain in all aspects. There is nothing like free lunch and those they feel it is, are totally unfit to live and survive. 

Let's stay safe and healthy..
-Arun Rise Sharma
#arunaksarun 

३००० वर्ष पहले जब हमारे पूर्वज शिकारियों और खानाबदोशों का जीवन व्यतीत करते थे तो उन्हें प्रत्येक दिन जंगलों में यह जानकारी होने के बावजूद कि जंगल एक अज्ञात खतरों से भरा क्षेत्र हैं, वन्य जीव जंतु उन्हें अपना भोजन बनाने के लिए मार सकते हैं, घायल कर सकते हैं, भोजन और अन्य आवश्यकताओं जैसे शहद, ईंधन, पोषण आहार को पूरा करने के लिए जाना पड़ता था क्योंकि उनके पास कोई और पर्याय नहीं था। प्रत्येक व्यक्ति को जीवित रहने के लिए भोजन की व्यवस्था करनी पड़ती थी और यही आधारभूत प्रश्न सबसे सामने था।
वह सब विशेष तौर पर सावधान और किसी भी जान जोखिम वाली स्थिति, आपदा और अपने आप को बचाने के लिए हमेशा तैयार रहते थे । वर्तमान समय में हमारे सामने भी ऐसी परिस्थिति है और एक वायरस बाहर हमें लापरवाह पाते ही हमारा अंत करने के लिए हमारी प्रतीक्षा कर रहा है तो अब हमारे सामने यक्ष प्रश्न है कि क्या हम घर के अंदर रहें और अर्थव्यवस्था को बंद कर दें और वायरस के शांत होने की प्रतीक्षा करें अन्यथा हम अपने अनुभव से सीखते हुए अपने आप को सावधान और सतर्क, शारारिक क्षमताओं को पोषक तत्वों से शक्तिशाली बनाते हुए वायरस से युद्ध कर उसे परास्त करें।

लाकडाउन अथवा जनता कर्फ्यू वर्तमान समय में महामारी से संघर्ष करने का सही तरीका नहीं है। हां, यह २०२० में था जब इसे इसलिए लागू किया गया था क्योंकि हम इस प्रकार की परिस्थितियों के लिए तैयार नहीं थे। लाकडाउन का उद्देश्य उस समय हमें ऐसी विषम परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करना, अनुशासित करना और परिवर्तित परिस्थितियों के अनुरूप नये जीवन पद्धति के अनुसार ढालना था। मास्क पहनना, सामाजिक दूरी रखना, जन समूहों से बचना, पोषित आहार, घर पर ज्यादा समय रुकना, परिवार और निकटतम परिजनों के साथ समय व्यतीत करना, योग करना, शारारिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए नियमित अभ्यास, ध्यान करना ठीक प्रकार से अपने को सुरक्षित और स्वस्थ रखना यह सब आवश्यक हो गये थे।

जिन्होंने यह सीख लिया है और इसका नियम अपने जीवन में उतार लिया और लापरवाही छोड़कर सही ढंग से सावधानी और सुरक्षा को अपना लिया है वह समय के साथ आगे बढ़ना सीख गये और ऐसे जिन्होंने यह सीख नहीं ली है और अभी भी पुरातनी जीवन पद्धति जिसमें जोखिम भरा है, जी रहे हैं, वह और उनके परिजन वायरस के खतरों से घिरे हुए हैं। यदि समय रहते वह समझ लेंगे तो अच्छा अन्यथा प्रकृति उन्हें उनके खिलंदड़े स्वभाव के लिए सहन नहीं करने वाली है और उन्हें अपने सख्त तरीके से रास्ते पर ले आयेगी या उन्हें छोड़ कर आगे बढ़ जायेगी।
 

अतः लाकडाउन आज के समय में अनावश्यक हैं। अपनी आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, जीवित रहने के लिए और जीवनचर्या को चलाने के लिए जीविका कमानी पड़ेगी। सरकार हर समय चेरिटी पर नहीं चल पायेगी। इसका अपना कोई भी आय स्त्रोत नहीं है और यह पूरी तरह से हम पर ही निर्भर करती है। लोकतंत्र और मानवीय जीवन सन्तुलन बनाए रखने के लिए हम सब परिश्रम से आय अर्जित करें और स्व निर्भर बनें। कोई भी, कहीं भी किसी को भी हमेशा बिना मतलब के पानी भी नहीं पिलायेगा, मुफ्तखोरी की कोई गुंजाइश नहीं होती है और जिसे यह बात समझ नहीं आयेगी वह समय के साथ धूल का फूल बन जायेगा।


इसलिए कृप्या अपना ध्यान रखें, स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें, भगवान शिव का आशीर्वाद हम सब पर हमेशा बना रहे।
-अरुण अभ्युदय शर्मा
#अरुणअभ्युदयशर्मा
 




Friday, April 16, 2021

Why Freebies schemes are hindrance to Society'and Nation

Q: Why Nowadays people ask for freebies scheme from Government?

Nowadays I generally find that some posts on social media mentioning about freebie to public on various subjects like Pension scheme, Unemployment allowance, Free education, medical facilities, old age homes, Food tickets, distribution of funds among Poor's, Increasing in Minimum wages, MSP on products and so on and unfortunately in individual greed the sharers put the worst examples of Libiya, Venezuela and sick economies like them but where it would lead, we need to understand. The Government do not have money to spend over us, it is who we pay for ourselves whether it is necessity or charity. The actual progress achieves through enhancing and developing our resources and tool-mastering. The Government's actual role in promoting self reliant people and organisations not in distribution of subsidy and other allowances. The revenue earned through taxation is for the society' and nation not for individual's benefit or grants. So Stop asking for grants and subsidies rather transform in becoming a good contributer to nation because a country may survive for sometime but a strong nation needs strong and prosperous nationalists contributing in growth and prosperity. I support individual cases and that too on merits and careful analysis but general schemes are nothing but hindrances to progress and prosperity. Remember even one of the most powerful civilisation in past got collapsed due to such freebies scheme. Wake up and rise!!
-Arun Rise Sharma
#arunaksarun 

Tuesday, April 13, 2021

नव वर्ष और नवरात्रि महोत्सव

नव वर्ष और नवरात्रि महोत्सव

जीवन संक्षिप्त यात्रा हैं। भोर के सूर्य उदय के प्रकाश में घटनाक्रम से होकर घटना-चक्र से गुजरती हुई कब में इस जीवन की संध्या हो जाती हैं यह पता भी नहीं चलता है और नवीन चक्र आकर अपने साथ ले चलता है। यही वह सत्य स्त्रोत हैं और परस्पर गुंथा है। काल चक्र में परिक्रमा करना ही आत्मतत्व की नियति है तो आइये इस नव वर्ष में एक और मंगलमय यात्रा का आरंभ करें और समाज और संस्कृति से अपने आप को जोड़े। 
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत।
ऊँ शांतिः शांतिः शांतिः
नव वर्ष और नवरात्रि महोत्सव पर शुभकामनाएं और बधाई ❤️❤️❤️
-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun

Sunday, April 11, 2021

कोरोनावायरस सैकंड लहर- क्या करें?


 देश में कोरोनावायरस सैकंड लहर व्याप्त है हम सब पर संकट मंडरा रहा है. ऐसे में हमें क्या करना होगा? मुझे नहीं होगा से लेकर  मेरे साथ वाले को हो गया अब मेरा क्या होगा के बीच झूलते हम इससे कैसे बचेंगे यही survival प्रश्न है? 
तो संयम रखें, सावधानी रखें,  जितना संभव हो घर में रहें. अगर वायरल फीवर या फ्लू आये तो उसे कोरोना जैसा ही मानकर इलाज और सावधानी रखें, जरूरी टेस्ट कराएँ , एक पल्स ऑक्सिमीटर खरीद लें और अगर सैचुरेशन लेवल 90-95% से ऊपर है तो पैनिक कर के हॉस्पिटल में भीड़ ना लगाएं, डाक्टर के सम्पर्क में रहें. अगर साँस लेने में तकलीफ ना हो और ऑक्सिजन लेवल ठीक हो तो  नियमित इलाज करें. विटामिन और मिनरल ठीक रखें,  मास्क पहने, बार बार हाथ धोयें, आराम करें, गर्म पानी पीयें, सोशल डिस्टेंस रखें, बड़े आयोजनों में शामिल होने से बचें, बाहर आना जाना जरूरी होने पर ही करें, भीड़ भाड़ से बचें, खान पान ठीक रखें , घर के बड़े बुजुर्ग का ख्याल रखें और साहस रखें घबरायें नहीं , याद रखें ये एक फेज है ना कि आपका जीवन, जल्द ही आप स्वस्थ होकर सामान्य जीवन में वापस आ जायेंगे 
इस कोरोनावायरस संकट काल में आपका धेर्य और सावधानी बरतना आपके व्यक्तित्व का परिचायक हैं, ।
धन्यवाद 🙏🙏🙏.
-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun

मन और मोक्ष

मन और मोक्ष

ओ३म् सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान्नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव ।*
*ह्रत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ।।*-(यजुर्वेद 34/6)
*भावार्थ:-*एक घुड़सवार और सारथी हमेशा अपने अश्वों को रास और शब्दों से सुयोजित कर यात्रा को बिना भटके पूर्ण करता है उसी प्रकार मन पर नियंत्रण हम मनुष्यों को मोक्ष प्राप्ति हेतु ले जाता है। जो विचार शक्ति और कर्म ह्रदय से संचालित है, जो पुरातन और अमान्य नहीं होते हैं अतः हे शिव, मेरी विचार शक्ति और कर्म शक्ति को मेरे तीव्र गति वाले "अक्स" मन से हृदय में सुस्थापित कर मुझे मोक्ष प्राप्ति हेतु संकल्प शक्ति का वर प्रदान करें।।
-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun

सेक्युलरिज्म और हम

प्रश्न: क्यों सेक्युलरिज्म - धर्म निरपेक्षता को हमारे जीवन का हिस्सा बनाया गया है?
 स्वतंत्रता के बाद भारत में  इतिहास लेखन और तथ्यों को निर्धारित मनोवैज्ञानिक रूप से पौराणिक सभ्यता को असफल दिखाने के उद्देश्य से लागू किया गया था, 1947-1975 का भारत बेचारगी से जी रहा था और दूसरी तरफ जर्मनी, जापान, चीन, इजराइल जैसे देश इस समय में विकसित होने लगे, कारण था, इतिहास की सही जानकारी मिली थी, हमें 750  वर्ष की दासता से अपमानित और दोषी अनुभव कराया जा रहा था कि हमारी संस्कृति इसी योग्य थी। उस काल के अत्याचार हमारी स्मृति से मिट नहीं रहें थे तब सैक्यूलर शब्द हमारे देश धर्म और संस्कृति का हिस्सा बनाने के लिए प्रयोग में लाया गया। अब हम मानने लगे कि यह ठीक है कि हम बार बार पीटे पर देखो हम रोये नहीं और यह हमारी संस्कृति है कि हमें पीट लो चाहे जितना पर हम रोयेगें नहीं। दुर्भाग्यवश हमने अपनी पिटाई को अपना भाग्य समझ उस पर प्रसन्न दिखना आरंभ कर दिया, और इसे ही अपनी दुर्बलताओं को छिपाने के लिए अपना लिया। सैकयूलर या निरपेक्षता के स्थान पर सापेक्षता सिद्धांत या सर्व धर्म समान आदर भाव प्रासंगिक,  न्यायोचित और विश्वसनीय है । 
-अरुण अभ्युदय शर्मा
#Arunaksarun

Sunday, April 4, 2021

3 Basic Questions related to our Existence

तीन आधारभूत प्रश्न जिनके उत्तर हम सब ढूंढ रहे हैं।।
The 3 basic questions related to our existence...

१. मैं कौन हूं?  Who am I ?

मैं निर्गुण, निराकार ब्रह्म के साकार सृष्टि रचियता के गुण सूत्र द्वारा सृजित कृति हूं ।।
I am one of best piece created by the virtue of the creator of the realisation of the formless omnipresent, omnipotent Brahman.
२. मैं कहां से आया हूं?  Where did I come from?

मैं निर्गुण, निराकार ब्रह्म के साकार सृष्टि रचियता के अंश से अनन्त समय काल में विकसित होकर से उत्पन्न हो कर विभिन्न सोपानों को पार करके अल्प समय के लिए साकार सृष्टि में उपस्थित हुआ हूं।।

I have been present in the real world for a short time after crossing various progressive steps  and arising through the  Nirguna- the form of the formless Brahm, evolving from the fraction of the creator of the universe in eternity.

३. मैं कहां जाऊंगा?  Where do I go?

मैं  इस  साकार रूप को त्यागकर दिव्य ज्योति रुप में समय काल से निकल कर साकार सृष्टि रचियता में विलीन हो कर निर्गुण निराकार ब्रह्म का ज्ञान रुपी सत्य स्त्रोत रुप में प्रवाहित रहूंगा।।

I will renounce this corporeal form and depart from time to time in the divine light form and merge with the real world creator and will flow in the form of true source of knowledge of the formless Brahm.
-अरुण अभ्युदय शर्मा
-Arun Rise Sharma
#arunaksarun

कुछ खोकर पाना है

जो अपने लिये रब से मांगकर लाता हूं 
वो भी शकल देखकर किसी जरुरतमंद को दे देता हूँ,

जब भी उठाता हूँ शब्द हाथों को, 
हर पिछली कहानी की तरह
अपना सब कुछ किसी मेहरबां को दे देता हूँ..

ख़ुद को कर देता हूँ तूफ़ान के हवाले अक्सर
जाते जाते अपना मुकद्दर भी अंजाने मांझी को सुपुर्द कर देता हूँ ।।

-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun

Thursday, April 1, 2021

Who is Brahmin

Who is Brahmin?


Brahmin doesn't specify particular community or society in ancient Sanatan texts nor imply a caste, but simply the sages and wise ones who are  "masters" (experts), guardian, recluse, preacher or guide of any knowledge, I repeat knowledge again,  imparting gyan and learning, exploring practical aspects, making people aware about improving life and its blissfulness through invention & preserving traditional cultural heritage and values are "BRAHMIN".
-Arun Rise Sharma
#arunaksarun