उत्तर: ऐसा है कि अर्जुन अंतिम समय तक भी युद्ध के लिए अस्त्र शस्त्र उठाने के लिए तैयार नहीं था और ऐसा पहली बार नहीं हुआ यदि हम इतिहास में जाएंगे इससे पहले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के सामने भी इसी प्रकार के प्रश्नभ्रम सामने आ गए थे और इसी प्रकार के मायारूपी प्रश्न चिन्ह अन्य महापुरुषों जैसे गौतम बुध और भगवान महावीर के समक्ष भी आये थे और वह सबने सन्यास मार्ग से मुक्ति का द्वार खोल कर उस पर जाने के लिए उद्धत किया था पर राम की यह दुविधा उनके गुरु वशिष्ट पर प्रकट हो गई थी और गुरु वशिष्ट ने उन्हें कर्म उपदेश दिया जो कि योग वशिष्ठ के नाम से जाना जाता है यह इसी प्रकार है जैसे श्री भगवत गीता है इसी प्रकार अष्टावक्र ने भी राजर्षि जनक को उपदेश दिया था जिससे जनक राजा होते हुए भी इसी प्रकार उतना ही जीवन से जुड़े रहे थे।
कुरुक्षेत्र मैदान में अर्जुन ने जब युद्ध स्थल के मध्य में जाकर गुरु सेना की तरफ देखा तो किसी भी सामान्य व्यक्ति की तरह उनके मन के दो फाड़ हो गए एक कहने लगा शत्रु पक्ष में अपने प्रिय संबंधी देख कर उनके प्रति मोह और राज्य जीतने की इच्छा खत्म हो गई दूसरा कारण था कि विपक्ष में सभी योद्धाओं को जानते थे अतः उनकी वीरता से प्रभावित दिखे अचानक ना चाहते हुए भी एक प्रकार की सर्द पांवों जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी जिसमें बुद्धि के ऊपर अपनी वीरता पर सन्देह स्थापित हो गया वह भी भूल गए कि अभी कुछ समय पहले उसने अकेले के रूप में उन सब के छक्के छुड़ा दिए थे तब श्री कृष्ण ने अर्जुन की भावनाओं को समझते हुए उसे समझाने के लिए बुद्धि कौशल का परिचय दिया।
किसी को भी समझाने के 3 तरीके हैं पहला तरीका है कांता कौशल अर्थात् पत्नी के समान बात करके हिम्मत बढ़ाना इसमें सुख शक्ति को चैलेंज कर के उसे जागृत किया जाए ताकि व्यक्ति को अपने पुरुष तत्व का एहसास हो और वह आगे बढ़कर सामना कर सके श्री कृष्ण द्वारा इस विधि द्वारा जब अर्जुन की हिम्मत को बढ़ा नहीं पाए तब उन्होंने दूसरा तरीका वह मित्र कौशल अब उन्होंने मित्र की भांति अर्जुन को कर्म की व्याख्या दी आत्मदर्शन दिया यह समझाया कि अगर जीतोगे तो राज सुख मिलेगा और अगर मरोगे तो वीर सम्मान और इस तरह कर्म करने में दोनों हाथों में लड्डू है और अगर नहीं करोगे तो सब कहेंगे कि अर्जुन कायर है सारी जिंदगी हारे हुए शापित की तरह रहोगे, सन्यास पर जाओगे तो लोग कहेंगे कि जीवन में असफल हो गया इसलिए समाज से भागकर सन्यास आ गया लेकिन तब भी अर्जुन ना माना और युद्ध न करने पर अटल रहा तब श्री कृष्ण तीसरा और अंतिम सत्य कहते हैं जिसमें उनके मुख से निकला प्रत्येक शब्द परमात्मा प्रभु का आदेश था उन्होंने अपना विराट स्वरूप प्रकट किया और अर्जुन को आदेश दिया कि वह युद्ध के लिए तत्पर हो और फिर अर्जुन ने भगवान कृष्ण की प्रेरणा से रण कौशल दिखाया और वह युद्ध किया कि वह एक साधारण युद्ध से आगे बढ़कर महायुद्ध हुआ, यह महाभारत युद्ध था।
-Arun Rise Sharma
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