Showing posts with label सापेक्षता. Show all posts
Showing posts with label सापेक्षता. Show all posts

Monday, April 26, 2021

वामपंथ और सनातन संस्कृति

वामपंथ और सनातन संस्कृति

जब वामपंथी प्रशासन में आ जायेंगे तो 
मुफ्तखोरी की आदत लगा जाएंगे, 

भारी-भरकम शब्दों से खोखले नारे लगाएंगे,
 मुफ्त सामान और योजनाओं में जनता का धन लुटाएंगें, 

प्रशासन को पंगु कर करोड़ों रुपए के विज्ञापनों से कर्कश शोर मचाएंगे, 
मीडिया के सारे प्लेटफार्म पर मौत का नंगा नाच नचायेंगें, 

अंत में सर जी यह निकम्मा, वो भी निकम्मा, सब निकम्मे कहते कहते बेचारगी का नाटक दिखायेंगे और 
इस तरह  ये वामपंथी राष्ट्र भावना, देश और समाज को पूरी तरह निगल जाएंगे... 

और 'अक्स' हम स्तब्ध से एक कोने में मुंह में दही जमाये भौंचक्के से कबूतर की तरह आंख बंद करे, ठगे से खड़े रह जायेंगे।

यह सब बर्बाद कर जायेंगे,
वर्षों के सभ्यता संघर्ष पर आलस्य और मुफ्तखोरी वाला पोंछा लगा जायेंगे.. 

-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun

Sunday, April 11, 2021

सेक्युलरिज्म और हम

प्रश्न: क्यों सेक्युलरिज्म - धर्म निरपेक्षता को हमारे जीवन का हिस्सा बनाया गया है?
 स्वतंत्रता के बाद भारत में  इतिहास लेखन और तथ्यों को निर्धारित मनोवैज्ञानिक रूप से पौराणिक सभ्यता को असफल दिखाने के उद्देश्य से लागू किया गया था, 1947-1975 का भारत बेचारगी से जी रहा था और दूसरी तरफ जर्मनी, जापान, चीन, इजराइल जैसे देश इस समय में विकसित होने लगे, कारण था, इतिहास की सही जानकारी मिली थी, हमें 750  वर्ष की दासता से अपमानित और दोषी अनुभव कराया जा रहा था कि हमारी संस्कृति इसी योग्य थी। उस काल के अत्याचार हमारी स्मृति से मिट नहीं रहें थे तब सैक्यूलर शब्द हमारे देश धर्म और संस्कृति का हिस्सा बनाने के लिए प्रयोग में लाया गया। अब हम मानने लगे कि यह ठीक है कि हम बार बार पीटे पर देखो हम रोये नहीं और यह हमारी संस्कृति है कि हमें पीट लो चाहे जितना पर हम रोयेगें नहीं। दुर्भाग्यवश हमने अपनी पिटाई को अपना भाग्य समझ उस पर प्रसन्न दिखना आरंभ कर दिया, और इसे ही अपनी दुर्बलताओं को छिपाने के लिए अपना लिया। सैकयूलर या निरपेक्षता के स्थान पर सापेक्षता सिद्धांत या सर्व धर्म समान आदर भाव प्रासंगिक,  न्यायोचित और विश्वसनीय है । 
-अरुण अभ्युदय शर्मा
#Arunaksarun