"अक्षुण्ण समर्पण"
यूं तो जिंदा वह भी है जो चलते नहीं बाजारों में,
खोटे सिक्के से घूम-लौट आते हैं घर-बार नसीबों में,
हर पल फटी जेब सी जिंदगी मेरी,
जब तक मिला न था तू अंजान राहों में,
अब बांट पाऊं सब में कुछ 'अक्स' लम्हें यादों के,
मेरी हस्ती का बस इतना दाम कर देना,
"भोले" लक्ष्य अब यही पूरा कर देना,
फिर चाहे जीवन की कहीं भी शाम कर देना।
बस इतना ही कहा है और मान लेना,
फिर चाहे जैसी तेरी इच्छा, कहीं भी मेरे प्राण हर लेना।।
- ऊं नमः शिवाय -
-अरुण अभ्युदय शर्मा
09/03/2021
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