आत्म तत्व परम् तत्व
सांझ ढले जब सोया मैं
सपना कोई न मन में था,
पर पाया मूंदी आंखों ने
सपनों की झड़ी लगा दी।
उन सपनों को देखते देखते,
पता नहीं कब में सुबह हुई,
और कहीं अनंत में जीवन की अटल शाम हुई।
साये जो थामें हुए थे,
कब में हाथ से फिसल गये।
जीवन की धूप दौड़ में
ओस मोती से बिखर गए।।
क्षण भर भी विश्राम न किया,
बस चूहा दौड़ में जीवन जिया।
घूमकर कभी अपनों को न तका
आलस भाव से 'सूरज' न तका,
और समय का पहिया भी कभी न रुका।।
न भूत जिया, न वर्तमान जिया,
बस भविष्य को सजाने में समय जाया किया।
अब सतरंगी सुबह आने को है,
नयी सी बात बताने को हैं।
यात्रा पर पुनः ले जाने को है,
पर "अक्स" मन फिर से बहलाने फुसलाने को है।।
सो चल आलस छोड़,
उठकर हल्का हो,
समझ, कंघो के बोझ हट जाने को है,
सामान सारे यहां छूट जाने को है,
सपने अब टूट जाने को है
नये अध्याय जुड़ जाने को है,
प्रकाश अब समा जाने को है,
समाहित ऊर्जा अब पिघलाने को है,
अनंत अस्तित्व अब खिल जाने को है,
परम सत्य "शिव" अब मिल जाने को है।।
आत्म अध्याय जुड़ जाने को है,
शिव ज्योति अब समा जाने को है,
परम ऊर्जा अब पिघलाने को है,
अनंत अस्तित्व ज्ञान पाने को है,
परम सत्य "शिव" अब मिल जाने को है।।
-अरुण अभ्युदय शर्मा
#Arunaksarun
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