Wednesday, August 5, 2020

यूं ही चलता चलता दूर तलक चला जाता हूं !!

यूं ही चलता चलता दूर तलक चला जाता हूं,


यूं ही चलता चलता दूर तलक चला जाता हूं,
के मिलने जुलने वाले अज़ीज़ भी ख़ामोशी से पीछे छूट जाते हैं ..

मेरी दीवानगी मुझ पर ऐसे ही नहीं छा जाती,
हर बार की तरह एक ख़ामोशी दिल में दे कर गहरे तक उतर जाती हैं..

यूं तो कभी भी इतना मसरुफ़ नहीं हुआ,
के ख़ुद को भी आवाज़ ना दे सकूं..

पर बात इतनी सी है के सुन कर अनसुना करना मुझे आता है,
और अकेले में तारों से बात करना फिर चल कर साथ गुम हो जाना ख़ूब भाता है..

क्योंकि चलते चलते जब भी दूर तलक़ निकल जाता हूं,
 ये तारें भी आवारगी में चोट खाए आशिक बनकर साथ आ जाते हैं..

बाकी सच है के कुछ तो बचता नहीं है ख़ाक में मिल जाने पर,
पर गर्द में गुम निशान खुद ही दास्तां ए खाक बन एक चुप्पी से कह जाते हैं ...

तो अब सुनो अब मेरे ज़िगरी यार,
'अक्स' ऐसे यूं ही दूर तलक़ नहीं निकल जाता हूं, 
ख़ामोशी से जाकर फिर ना आने का फ़ैसला भी जतला जाता हूं ।।
-अरुण अभ्युदय शर्मा
-Arun Rise Sharma
#arunaksarun


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