Sunday, April 18, 2021

आंतकवाद और वामपंथ (नक्सलवाद) का आपस में क्या संबंध है?

आंतकवाद और वामपंथ (नक्सलवाद) का आपस में क्या संबंध है?
आंतकवाद, लोगों को डराकर, धमका कर, बहका कर उन्हें छद्म लक्ष्य और निश्चित जीवनशैली नियमों को अमल कराने पर जोर देकर हिंसा और समाज विध्वंसक गतिविधियों की तरफ़ प्रेरित करना, सरकार को डराकर, तोड़ फोड़ कर,  विरोधी लोगों को मृत्यु भय से भयभीत करना, उनकी हत्या करना, हथियारों का इस्तेमाल कर अपनी लालसाओं को पूरा करने के लिए अपराधिक कृत्य करना, किसी प्रकार से संसाधनों का मालिकाना अधिकार हासिल करना और उनका दुरुपयोग अपने खुद के लिए और अपने साथियों के लिए जो कि इसी लालसा में साथ निभाते हैं कि सबसे ज्यादा मालामाल वह खुद होंगे, बाकी सब उनके सेवादार और अनुचर होंगे के नाम पर हिंसक तरीके से नियंत्रण प्राप्त करना है और वामपंथ या जिसे क्षेत्रीय तौर पर नक्सलवाद का रुप माना जाता है, एक दूसरे से न केवल जुड़े हैं बल्कि आपस में गुंथे हुए हैं क्योंकि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वामपंथ यह समझता और जानता है कि वामपंथ विचारधारा दुर्बलता से भरी अपाहिज सोच है और चंद कामचोरों के दिमाग़ की उपज है अतः स्वयंमेव आने में असमर्थ हैं क्योंकि यह उस छलनी की तरह है जिसके बारे में कहावत है कि  छाज तो बोले, छलनी कैसे बोलें जिसमें ७० छेद अतः वामपंथ को हमेशा गाहे-बगाहे उस मौके की तलाश रहती है जिसमें शासन अपाहिज हो जाये और लोग पागलपन में डूब जाये और आसानी से समाजवाद और साम्यवाद यानी सबको बराबर मात्रा में मिलेगा, के नाम पर बरगलाये जा सके। वास्तव में  यह समाज व्यवस्था में लोगों को भड़काकर, गलत तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष निकालकर उनको  निराशा और असंतोष से भरकर, पागलपन और उदंडता को बढ़ाकर उनका शोषण करने जैसा है जो उन्हें दीर्घ काल में नश्वरता और विनष्टता की तरफ़ पहुचायेगा।  १९१७ में रुस में यही हुआ, राज सत्ता रक्षात्मक मुद्रा में आ गई और अधिकारों के नाम पर जनता सड़कों पर आ गई, परिणाम सामने आ गया पर क्या उसका लाभ वास्तव में लोगों तक पहुंचा, यह सच्चाई हम सब भली भांति जानते हैं। लोगों की न तो ग़रीबी दूर हुई और ना ही जीवन सुखमय बना। अब हम सब के सामने अमरीका का उदाहरण हैं, ७०/८०/९० के दशक में जो देश एक राष्ट्र भावना से जाना जाता था और कनाडा अलग पहचान रखते हुए भी अपने को अमरीकी पहचान से जोड़ता था वही राष्ट्र २००१ में टिविन टावर पर कायरता पूर्ण आंतकवादी एक्शन को समय रहते ज़बाब नहीं दे पाया और शाकॅड होकर रह गया तो वामपंथ विचार धारा ने इसी बात का लाभ उठाना शूरु कर दिया और अमेरिकी शासन प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया और अपने आप को एक विकल्प के रूप में पेश किया। पहले से ब्रेन वाश लोगों ने इसे फैलाना और प्रसारित करना शूरु कर दिया तो मौके का फ़ायदा उठा उसी दशक में उसका स्थान चीन ने लेने के लिए अपने को तैयार कर लिया। लाख प्रयासों के बावजूद अमरीका वापस उसी स्थान पर नहीं पहुंच पा रहा है क्योंकि जनता इस दौरान कई ऐसी मुफ्त सामान और योजनाओं की तरफ़ आकर्षित हो गई। हर पार्टी से और ज्यादा मुफ्तखोरी वाली योजनाओं की मांग की जाती हैं क्योंकि मुफ्तखोरी की बीमारी ऐसे ही पड़ती है और इसके दूरगामी परिणाम जब तक सामने आते है तब तक अर्थव्यवस्था की कमर टूट जाती हैं और राष्ट्र भावना खंडित हो कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देश में बदल जाती हैं। अब प्रश्न उठता है कि राष्ट्र और देश में क्या अंतर है? देखिए राष्ट्र भावना से प्रेरित है जिसमें त्याग आदर्श और कर्तव्य की बात होती है जो वामपंथी विचारधारा को suit नहीं करती और देश क्षेत्र से और देश समय काल में बदल जाते हैं जैसे रुस का हुआ पर राष्ट्र का गौरव हमेशा स्थायित्व और संस्कृति प्रदान करता है पर वामपंथ को उससे 🔔 फर्क नहीं पड़ता है। बेसिकली वामपंथ समान रूप से सम्पन्न होना नहीं बल्कि सामूहिक रूप से निर्धन होना है और उस स्तर तक समाज व्यवस्था को तोड़ना है जहां प्रत्येक व्यक्ति को अकेले कर उसका शोषण किया जा सके। अतः दिमाग की बत्ती गुल मत होने दें, एक रहे, मुफ्तखोरी की आदत से छुटकारा पाये, क्योंकि अगर मेहनत करने की इच्छाशक्ति रहेगी तो आप वह सब कुछ भी अर्जित कर सकते हैं जो आपका स्वप्न है पर मुफ्तखोरी की आदत पड़ गई तो जो बचाया और कमाया है वह भी गंवा देंगे। इतिहास याद रखें जब जब सरकार कमजोर और अवसरवादियों से भरी होगी यह किसी न किसी रूप में आपकी निर्णय क्षमता को प्रभावित करेंगे इसलिए मजबूत रहना अपरिहार्य है और हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। 
-अरुण अभ्युदय शर्मा
#arunaksarun

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